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भूख और कुपोषण भारत की सबसे बड़ी समस्या

पूर्व राष्ट्रपित एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी किताब ”भारत 2020” में गंभीरतापूर्वक जोर देते हुए लिखा था कि भारत 2020 में सुपरपावर बन जाएगा। अभी चार साल हैं, उनकी बात सत्य सिद्ध हो पाती है या नहीं यह समय के गर्भ में है।
सवाल है कि भारत के सुपरपावर बनने से क्या हो जाएगा। हाल ही में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी किया है, जिसमें भारत को ग्लबोल हंगर इंडेक्स में 97वीं रैंक मिली है। इस सूची में पाकिस्तान को छोड़कर भारत अपने अन्य पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, चीन तथा बांग्लादेश से नीचे है। यहां तक की इस सूची में केन्या, मालावी व युद्ध से ग्रस्त इराक भी भारत से आगे हैं। 2015 में नेपाल भारत से 7 पायदान पीछे था, आज व भारत से 15 स्थान आगे है। सन् 2000 में बांग्लादेश भारत से एक स्थान पीछे था, लेकिन पिछले 15 सालों में 7 स्थान आगे हो गया है। साथ ही नेपाल 6 अंक भारत से आगे था, इस बार की रैंकिंग में वो भारत से 25 स्थान आगे है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर करीबन 7.8 प्रतिशत है। भारत खुद को दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली देशों में शुमार करना चाहता है। लेकिन जिस तरह से देश में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है, उससे देश की वैशविक स्थिती (ग्लोबल इमेज) को गहरा झटका लग रहा है।
रिसर्च के मुताबिक 39 % बच्चे जिनकी उम्र 0-5 साल है उनका अवरूद्ध विकास (स्टंटेड ग्रोथ) हो रहा है। जिसका मतलब है इन बच्चों को पोषित आहार नहीं मिल पा रहा है। जिस कारण हर बीस में से 1 बच्चा अपनी पांचवी सालगिराह भी नहीं देख पाता। यह बहुत ही भयावह तथा शर्मनाक स्थिति है। बाल मृत्यु दर इस रफ्तार को अगर नहीं रोका गया तो 2016 में पैदा होने वाले 9 लाख बच्चे 2021 में अपनी पांचवी सालगिराह पर जिंदा नहीं रह पाएंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक तो भारत अभी तक अन्य विकसित देशों के मुकाबले पासंग भी नहीं है। इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है। वो है भारतीय राजनीति में धर्म तथा जाति का प्रभाव व एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का राजनीतिक रवैया। हमारे देश में मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स) पर तो बहस ही नहीं हो पाती। ऐसी बहसें केवल तब ही देखने या सुनने को मिलती हैं जो यूएन, डबल्यूएचओ या अन्य कोई अंतर्राष्ट्रीय संगठन ऐसी कोई रिपोर्ट जारी करता है। भारत में मीडिया ऐसी रिपोर्टों को कोई खास तवज्जो नहीं देता है। क्योंकि स्वास्थ्य से संबंधित कोई न्यूज टीआरपी जेनरेट तो नहीं ही करेगी। यह हमारे चौथे स्तंभ की सच्चाई है। जो बहुत कड़वी है।